||महात्मा गौतम बुद्ध || भारत के रत्न बौद्ध धर्म सिद्धार्थ

महात्मा गौतम बुद्ध जी

 बुद्ध धर्म के प्रवर्तक महात्मा गौतम बुद्ध का जन्म कपिलवस्तु के राजा शुद्धोधन के यहां हुआ था इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था इनका विवाह यशोधरा नामक सुंदर राजकुमारी से हुआ था उससे राहुल नाम का पुत्र हुआ सिद्धार्थ ने ज्ञान प्राप्ति के लिए घोर तपस्या की इन्होंने बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति की तपस्या करने से इनका मुख मंडल पर एक तेज  विद्यमान हो गया था| ज्ञान प्राप्ति के बाद यह बुद्ध कहलाए बुद्ध का कहना था कि दुख ना पहुंचाओ सब से प्रेम करो परोपकारी बनो जाति पात का भेदभाव से दूर रहो सत्य का साथ दो उनकी शिक्षा धर्य से काम लो सम्राट अशोक भी बौद्ध धर्म से प्रभावित हुए थे अपने पुत्र महेंद्र तथा  पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका में भेज कर  बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार भी किया था 
Light of Asia  एशिया का ज्योतिपुंज
भगवान बुद्ध को एशिया का ज्योतिपज भी कहा जाता है  इनका जन्म 563 ईसा पूर्व कपिलवस्तु के लुंबिनी नामक स्थान पर (जो अब नेपाल में है)हुआ था इनके पिता का नाम शुद्धोधन शाक्य गण के मुखिया थे तथा इनकी माता महामाया देवी मृत्यु के जन्म के सातवें दिन हो गई थी उनके बचपन का नाम सिद्धार्थ इनका विवाह 16 वर्ष की अवस्था में यशोधरा के साथ हुआ था इनका एक पुत्र था जिसका नाम राहुल था कपिलवस्तु की सैर पर निकले तो इन्होंने चार दृश्यों को देखा
1.बूढ़ा व्यक्ति 
 2.बीमार व्यक्ति
 3.एक शव
4.संन्यासी 


महाभिनिष्क्रमण
सांसारिक समस्याओं से व्यथित होकर सिद्धार्थ ने 29 वर्ष की अवस्था में गृह का त्याग किया है जिसे बुद्ध धर्म में महाभिनिष्क्रमण कहा जाता है गृह त्यागने के बाद बुद्ध ने आलारकलाम से बौद्ध धर्म की शिक्षा ली अतः
आलारकलाम सिद्धार्थ के प्रथम गुरु कहलाए. उसके बाद सिद्धार्थ ने राजगीर के रुद्रकरामपुत्र से शिक्षा ग्रहण की | बिना अन्न जल ग्रहण किए 6 वर्ष की कठिन तपस्या के बाद 35 वर्ष की आयु में वैशाख पूर्णिमा की रात निरंजना नदी (फल्गू नदी)के किनारे पीपल वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ को ज्ञान की प्राप्ति हुई ज्ञान प्राप्ति के बाद सिद्धार्थ बुद्ध के नाम से जाने करें जिस स्थान पर बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई उस स्थान को बोधगया कहा गया 


महात्मा बुद्ध के प्रथम उपदेश धर्मचक्रप्रवर्तन
ज्ञान प्राप्ति  के पश्चात पश्चात बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश सारनाथ ऋषि पटनम वाराणसी में भी इस घटना को बौद्ध ग्रंथों में धर्मचक्रप्रवर्तन कहागया




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