Mahavir Jayanti | जाने यहां महावीर जयंती कब है और क्यों मनाई जाती है?
महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थकार थे. हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र मास के 13वें दिन महावीर स्वामी का जन्म हुआ था. माना जाता है कि भगवान महावीर का जन्म बिहार के कुंडग्राम/कुंडलपुर के राज परिवार में हुआ था.
Mahavir Jayanti Kab Hai Aur Kyo Manai Jati Hai – महावीर जयंती हिंदू कैलेंडर के अनुसार चैत्र मास के 13वें दिन जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा बड़ी धूमधाम से मनाया जाने वाला त्योहार है. इस दिन जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्मदिन है.
Mahavir Jayanti |
भगवान महावीर जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर थे. जिन्होंने अपनी 12 वर्ष की कठोर तप या तपस्या से ज्ञान प्राप्त किया था और अपनी इंद्रियों तथा भावनाओं को पूरी तरह से जीत लिया था.
कहा जाता है कि बचपन में उन्होंने बिना किसी डर के एक भयानक जहरीले सांप को अपने काबू में कर लिया था. तभी से उन्हें महावीर के नाम से पुकारा जाने लगा. महावीर जयंती (Mahavir Jayanti) के इस पर्व पर जैन मंदिरों को विशेष रूप से सजाया जाता है.
इसके साथ ही भारत में कई जगहों पर जैन समुदाय द्वारा अहिंसा रैलियां निकाली जाती हैं. और इस महावीर जयंती के खास मौके पर गरीबों और जरूरतमंदों को दान भी दिया जाता है. तो चलिए हम आपको बताते हैं आगे 2022 में कब और क्यों Mahavir Jayanti मनाई जाती है?
महावीर जयंती कब है? (When is Mahavir Jayanti )
हिंदू धर्मों के अनुसार, इस समय अवधि के बाद और उससे पहले की जाने वाली पूजा सामान्य पूजा के समान होती है. लेकिन अगर त्रयोदशी तिथि के दौरान पूजा और आराधना की जाती है, तो कई गुना फल प्राप्त होते हैं.
महावीर जयंती कब और क्यों मनाई जाती है?
हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को महावीर जयंती (Mahavir Jayanti) मनाई जाती है. सनातन धर्म के अनुसार कहा जाता है कि इसी दिन महावीर जी का जन्म हुआ था. इसलिए यह पर्व साल में मार्च या अप्रैल के महीने में आता है. और इसे भगवान महावीर के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है.
इस दिन महावीर के जन्मदिवस पर उन्हें प्रसन्न करने के लिए जैन लोग जुलूस निकालते हैं और उनका अभिषेक कर झांकी सजाते हैं.
भगवान महावीर जी का जन्म 540 ईसा पूर्व भारत के कुंडग्राम (वैशाली) में हुआ था. जैन धर्म के संस्थापक एवं प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव थे. के पिता का नाम सिद्धार्थ और इनकी माता का नाम त्रिशला इसलिए जैन धर्म के ग्रंथों में उनके द्वारा दी गई शिक्षाओं का वर्णन आज भी विस्तार से देखा जा सकता है.
भगवान महावीर हिंसा के बिल्कुल खिलाफ थे. महावीर का पहला सिद्धांत था कि बिना किसी कष्ट के अहिंसा का मार्ग अपनाना चाहिए. और उन्होंने अपने जीवनकाल में हमेशा लोगों को सच्चाई का समर्थन करने के लिए प्रेरित किया.
हिन्दू धर्मों के अनुसार जैन धर्म को सबसे प्राचीन धर्म माना जाता है. इसलिए महावीर जयंती को अस्तेय और ब्रह्मचर्य के सिद्धांत का ज्ञान देने का दिन माना जाता है. इनके के द्वारा दी गई शिक्षा हिंसा न करना, सदा सत्य बोलना ,चोरी न करना तथा संपत्ति न रखना
महावीर स्वामी का जन्म कब और कहाँ हुआ था (When and where was Mahavir Swami Born Information)
भगवान महावीर जी का जन्म लगभग ढाई हजार साल अर्थात ईसा से 540 ईसा पूर्व भारत के कुंडग्राम (बिहार) में वैशाली गणराज्य के क्षत्रिय कुंडलपुर में राजा सिद्धार्थ और उनकी पत्नी रानी त्रिशला के गर्भ से तीसरी संतान के रूप में चैत्र शुक्ल तेरस (त्रयोदशी) को हुआ था. यह वर्तमान युग में कुंडलपुर बिहार के वैशाली जिले में स्थित है.
भगवान महावीर के बचपन का नाम वर्धमान था, इनके पिता का नाम महाराज सिद्धार्थ और माता का नाम महारानी त्रिशला था. महावीर स्वामी ने 30 साल की उम्र में ही घर-बार छोड़ दिया था अपने बड़े भाई नंदी वर्धन से दीक्षा लेने के बाद 12 साल तपस्या की कठिन तपस्या के बाद बाद ही उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई तथा भगवान महावीर कहा जाने लगा. महावीर स्वामी धर्म के 24वें तीर्थंकर थे और उनका जीवन त्याग और तपस्या से घिरा रहा.
जाति, भेदभाव, हिंसा, पशुबलि के युग में जन्म लेकर भगवान महावीर ने संसार को सत्य और अहिंसा का पाठ पढ़ाया. जब महावीर शिशुवस्था में थे, तब इंद्र और देवताओं ने उन्हें सुमरू पर्वत पर ले जाकर भगवान के जन्म का जश्न मनाया.
जब वे युवावस्था में थे तब उनका विवाह यशोदा नामक राजकुमारी से हुआ था. और जब वह 28 वर्ष के थे, तब उनके माता-पिता की मृत्यु हो गई. उसके बाद उन्होंने मार्गशीष कृष्ण दशमी के दिन 30 वर्ष की आयु में दीक्षा ग्रहण की.
महावीर स्वामी ने तपस्या, संयम और समता का अभ्यास किया और पंच महाव्रत के धर्म का पालन किया. उन्होंने महसूस किया था कि इंद्रियों-वस्तुओं के सुख केवल दूसरों को दुःख देने से ही प्राप्त हो सकते हैं.
इसलिए उन्होंने सबके साथ प्रेम से पेश आते हुए दुनिया को अहिंसा का पाठ पढ़ाया. महावीर कहते हैं कि “धर्म सबसे उत्तम मंगल है” और वे यह भी कहते हैं कि सदाचारी लोगों के मन में धर्म का वास होता है.
महावीर स्वामी ने अपने प्रवचनों के माध्यम से धर्म, सत्य, अहिंसा पर सबसे अधिक बल दिया. इसलिए उनके जीवन में त्याग, संयम, प्रेम, करुणा, विनय और सदाचार ही उनके प्रवचनों का सार थे. और इस प्रकार महावीर ने देश के कोने-कोने में जाकर अपना पवित्र संदेश देश-दुनिया की जनता तक पहुँचाया.
महावीर ने अपना उपदेश प्राकृत भाषा अर्द्ध मगधी मे दिए थे
भगवान महावीर के पांच सिद्धांत (Five Principles of Lord Mahavira)
महावीर स्वामी द्वारा (जैन धर्म) के अनुसार पंचशील पांच मूलभूत सिद्धांत बताया गया है, जो किसी भी मनुष्य को सुख-समृद्धि से भरे जीवन की ओर ले जाता है. तो आइए जानते हैं उन पांच बुनियादी सिद्धांतों के बारे में.
1. अहिंसा
भगवान महावीर अहिंसा के पुजारी थे, इसलिए उनका मानना था कि इस दुनिया में जितने भी सभी त्रस जीव आदि हिंसा के अधीन नहीं होने चाहिए. उन्हें अपने रास्ते पर जाने से नहीं रोका जाना चाहिए. साथ ही उन सभी के प्रति प्रेम और समानता की भावना रखते हुए उनकी रक्षा करनी चाहिए. इस अवधि में अहिंसा के व्रत का पालन करने का जुनून अधिक होना चाहिए. क्योंकि कोरोना वायरस जैसी महामारी भी एक हद तक प्रकृति और जानवरों के खिलाफ हिंसा का ही परिणाम है.
2. सत्य
सत्य के बारे में महावीर जी कहते हैं कि मनुष्य को सदैव सत्य के मार्ग पर चलना चाहिए और न ही किसी भी स्थिति में झूठ का सहारा लेना चाहिए. क्योंकि सत्य के संबंध में कहा जाता है कि जो ज्ञानी सत्य की आज्ञा में रहता है, वह तैरकर मृत्यु को पार कर जाता है.
3. अपरिग्रह
भगवान महावीर ने अपरिग्रह के बारे में कहा था कि मनुष्य ने जरूरत से ज्यादा सामान इकट्ठा करने से बचना चाहिए. ऐसा व्यक्ति अपने दुखों से कभी मुक्त नहीं हो सकता. प्रत्येक व्यक्ति को सुखी और शांतिपूर्ण जीवन जीने के लिए जरूरत के अनुसार चीजों का संचय करना चाहिए. इसीलिए भगवान महावीर ने अपरिग्रह के माध्यम से संसार के कल्याण हेतु यह संदेश विश्व को दिया है.
- अस्तेय
अस्तेय के सन्दर्भ में महावीर जी ने कहा है कि जो व्यक्ति अपने जीवन में अस्तेय का अनुसरण करता है, वह हर कार्य हमेशा संयम से करता है. अर्थात् अस्तेय का अर्थ है चोरी न करना, लेकिन यहाँ चोरी का अर्थ केवल भौतिक वस्तुओं को चुराने से नहीं है बल्कि दूसरों के प्रति बुरी नज़र से देखना भी है, जिससे सभी मनुष्यों को बचना चाहिए. शांतिपूर्ण जीवन प्राप्त करने के लिए हमें अस्तेय का पालन करना चाहिए क्योंकि अस्तेय का पालन करने से ही हमें मन की शांति मिलती है.
- ब्रह्मचर्य
भगवान महावीर कहते हैं कि ब्रह्मचर्य पूर्ण तप, नियम, ज्ञान, दर्शन, चरित्र, संयम और शील का मूल है. तपस्या में ब्रह्मचर्य सर्वोत्तम तप है. यानी ब्रह्मचर्य का अर्थ है अपनी आत्मा में लीन हो जाना या अपने भीतर छिपे ब्रह्म को पहचानना. अगर आपको बाहरी लोग परेशान करते हैं, तो आप दुनिया की परवाह न कर केवल अपनी मन की शांति के लिए तप करते हैं, तो आप ब्रह्मचारी कहलाएंगे.
महावीर जयंती का महत्व (Significance of Mahavir Jayanti)
महावीर जयंती का महत्व हिंदू और जैन धर्मों के लिए अधिक है. महावीर का जन्म राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के शासनकाल में हुआ था. भगवान महावीर का जन्म समय स्थान को बिहार के नाम से जाना जाता है. जिसका सपना रानी त्रिशला को 14 दिन बाद आया था.
इस सपने में भविष्यवाणी की गई थी कि भविष्य में पैदा हुआ यह बच्चा तीर्थंकर बनेगा और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करेगा और समाज को धर्म के मार्ग पर ले जाएगा.
जिस प्रकार भविष्यवाणी की गई थी उसी प्रकार भगवान महावीर ने 12 वर्षों की कठोर तपस्या के बाद आध्यात्मिक ज्ञान को प्राप्त किया और समाज को अहिंसा का पाठ पढ़ाया.
भगवान महावीर को निर्वाण प्राप्त
जैन धर्म में ईश्वर को नहीं माना जाता जैन .धर्म में आत्मा की मान्यता है महावीर कर्म वासियों पुनर्जन्म में विश्वास रखते थे जैन धर्म ने अपने आध्यात्मिक विचारों को संघर्षों से ग्रहण किया था जैन तीर्थंकरों की जीवनी कल्पसूत्र में संकलित है कल्पसूत्र के रचयिता भद्रबाहु थे महावीर स्वामी का देहांत निर्वाण 72 वर्ष की आयु में 468 ईसा पूर्व बिहार राज्य के पावापुरी राजगीर में हो गया
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